बुधवार, 3 अगस्त 2022

गोंड समुदाय की समृद्ध विरासत



गोंड समुदाय में कई  उप जनजातियां हैं।  हालांकि सांस्कृतिक और नस्लीय तौर पर यह सभी एक जैसी हैं।
नस्ल के तौर पर गोंड समुदाय की उत्पत्ति को लेकर कई तरह के सिद्धांत पेश किए गए हैं हालांकि जाने-माने मानव विज्ञानी  हीमेनडोफ्र   की राय है कि हिंदू और अन्य समुदाय के लोगों ने इस जनजाति  आदिवासी समुदाय का नाम "गोंड,  रखा आमतौर पर यह लोग अपने लिए इस शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं मतलब इनके बीच  यह हमेशा अपने आपको कोईतुर या कोंयावासी कहते हैं। 
गोंड समुदाय की सामाजिक संरचना काफी पुरानी और अनूठी है । यह व्यवस्था इनके के गुरू पुवर्ज पहाँदी  कुपार लिगो  द्वारा स्थापित की गई थी   
     गोंडसमुदाय के आदिगुरु  तिरुपारीपहाँदी कुपार लिगो  
 गोंडसमुदायके आदिगुरु तिरु पारी पहाँदी कुपार लिगों का चित्र

यह व्यवस्था अपने अनोखे पन के साथ अभी तक चली आ रही है। समय-समय पर दूसरे समुदायों द्वारा कई तरह के यह हस्तक्षेप सामना करने के बावजूद गोंड समुदाय अपनी परंपराओं के साथ जीवन यापन कर रहा है। और गोंड समुदाय से जुड़ी सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन से पता चलता है कि यह समुदाय अब अपने सामाजिक विकास के शुरुआती चरण से काफी आगे बढ़ चुका है जबकि इससे जुड़े कुछ तबके सभ्यता के अपेक्षाकृत आधुनिक चरणों से भी जुड़े चुके हैं इस समुदाय में 750 गोत्र हैं 2250 कुल देवी देवता हैं और इन 750 गोत्रों को  सभी गोत्रों को अलग-अलग वृक्ष की रक्षा के लिए  उत्तरदायित्व किया गया है अर्थात इनके गुरु पहाँदी कुपार  लिंगो द्वारा यह व्यवस्था इनको दी गई है।
परिवार
गोंड समुदाय की सबसे छोटी इकाई परिवार है। एक समान देव पूजने वाले या कुटुम परिवार बढ़ जाने के बाद कई परिवार एक के समूह को  गोत्र कहा जाता है, गोत्र या कुल में कई परिवारों का समूह होता है जिसे यह इन्हें टोटम कहा जाता है मुख्य रूप से गोत्र पर निर्भर होते हैं जैसे किसी  गोत्र अडीयाम  आर्मो अहोम,ओयमा,ओलाडी,उडाम एलाम, तिडगाम,मरकाम, इन गोत्रों के जो भी सगाजन होंगे जिनकों  संगापाढी, भी  कहा जाता है गोंड भाषा में इन गोत्र धारियों की पहचान के लिए इनका एक झंडा होगा इनकी पहचान के लिए इनका एक गढ़ होगा देव संख्या 6 मानी  गई है।
यदि 6 देवधारी लोग शादी के लिए संबंध बनाएंगे तो केवल और विषम संख्या के पास केवल 3,5,7 देव के पास आपनी शादी करेगें 
इसी प्रकार से इनको इनके जो 750 गोत्र मिले हैं उन्हीं में इनका आपस में विवाह होता रहता है इसलिए यह जो इनकी परंपरा है यह इनकी सामुदायिक परंपरा है जानिए खुद में इतने समृद्ध हैं कि इन्हें किसी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि विवाद सम्बन्ध  से परिवार की उत्पत्ति होती है और यही यह बात सिद्ध कर देती है कि गोंड समुदाय खुद में एक बेहद समृद्ध  समुदाय है 
प्रत्येक गोत्र प्रकृति में किसी ना किसी पेड़ की रक्षा करता है इस प्रकार से भी इनको प्रकृति का रक्षक माना गया है इस प्रकार से इस समुदाय में कभी भी दहेज की प्रथा नहीं रही उल्टा वर पक्ष के लोग लड़की पक्ष का मूल्य देते हैं। हालांकि आज समय के अनुसार और दूसरे लोगों को देख  कर कही कही थोडी बहुत प्रथाओं में परिवर्तन हुआ है  लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आज भी इसी प्रकार की प्रथा है परंपरागत रूप से दहेज बिल्कुल भी ना लिया जाता है ना दिया जाता है।

महिलाओं की स्थिति

गोंड समुदाय में महिलाओं की स्थिति हमेशा सम्मानीय रही है उदाहरण, के रूप रानी दुर्गावती गोंड साम्राज्य की सबसे प्रतापी सम्राक्षी  जबलपुर गढ़ मंडला की सम्राक्षी ,भोपाल की रानी कमलापति रानी गोंडवश राजघराना वंश की थी 
मोटे तौर पर महिलाओं की हैसियत पुरुषों के बराबर ही है वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं हर काम में हाथ बढाती हैं जीविकोपार्जन में भी महिलाओं की अहम भूमिका होती है ज्यादातर घरेलू काम महिलाएं करती हैं वे बच्चों एवं और पशुओं को देखभाल करती हैं साथ ही परिवार के लिए खाना भी बनाती हैं परिवार के सभी अहम फैसलों और विवादों में पुरुष अपनी पत्नी से सलाह  लेते हैं इनकी राय का भी सम्मान करते हैं महिलाओं को कुछ रीति-रिवाजों से दूर रखा जाता है कुल मिलाकर गोंड महिलाओं में अपने समाज में हैसियत सम्मानजनक होती है। इनमें पर्दा प्रथा नहीं है

विवाह
पारंपारिक और समुदाय में कई तरह के विवाह प्रचलन में गोंड समुदाय में खून के रिश्तेदारों के बीच शादी का  प्रचलन नहीं है अर्थात एक गोत्र में शादी नहीं करते हैं यह इनका टोटम होता है टोटम एक दूसरे में शादी नहीं करेंगे चाहे कुछ भी हो जाए  भाई बहन ही कहलाएंगे।   मामा और बुआ के बच्चों के बीच शादी की परंपरा है लड़का लड़की की मर्जी के अलावा माता-पिता की सहमति भी बहुत जरूरी होती है। गोंडजनों में इनकी जो शादी कराने वाला मुठबा या भुमका जिसे ये बैंगा कहते है विवाह करवाता है इनकी परंपराओं के अनुसार इनकी शादी अधिकतर दिन में ही होती है गोंडसमुदाय में विधवा विवाह की भी अनुमति है ऐसी कई परंपराएं जो गोंडसमुदाय  को इनके अलग होने के कई प्रमाण देती है जैसे 
दूध लौटावा प्रथा ,जमाई विवाह, गोल गधेड़ो विवाह, और भी अन्य परंपराएं हैं


त्योहार

गोंड समुदाय के धार्मिक त्योहारों में अखाडी,पोला, जिवाती,  दिवाली, नवोतिन्दाना दशहरा और फाग आदि शामिल हैं इनमें से कई त्योहारों का संबंध खेती के मौसम से है समुदाय से जुड़े त्यौहार सामूहिक रीति-रिवाजों पर आधारित होते हैं इन त्यौहारों को काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है इनके त्यौहार बुनियादी रूप से बिल्कुल हट के इनकी  परंपराओं के हिसाब से ही होते हैं।


बलि
और समुदाय में अपने देवी-देवताओं को बलि भी चलाते हैं समुदाय के लोग देवी-देवताओं खुश करने के लिए बकरा और मुर्गे की बलि भी देते हैं बीमारी से मुक्ति के लिए बलि देने का प्रचलन भी है माना जाता है कि बलि के जरिए इन शैतानी तत्वों को खात्मा मुमकिन होगा जो गांव के लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं

मृत्यु

मृत्यु को लेकर गोंड समाज और समुदाय की अलग अवधारणा है समुदाय का मानना है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसका संबंध देवी शक्तियों से है  समु़दाय बीमारी और मौत दोनों को देव शक्तियों का प्रभाव बताता है शुरुआती में इस समुदाय के शव को दफनाने की परंपरा थी हालांकि गोंड समुदाय द्वारा शव को जलाने की परंपरा शुरू करने के बाद से दोनों परंपराएं प्रचलन में है मगर अधिकतर बाहुल्य क्षेत्रों में जहां गोंड समुदाय आदिवासी लोग निवास करते हैं वहां पर दफनाने की ही प्रथा आज भी  है आज भी चलन में है।


सांस्कृतिक पहलू व देव पुजा सेवा अर्जी गोगो

गोंडसमुदाय ने अपनी सामाजिक संरचना में खुद की संस्कृति परंपरा विकसित की है इसमें अन्य संस्कृतियों को ज्यादा महत्व नहीं है इनकी संस्कृति परंपरा है सरल और वाचिक  परंपराओं के जरिए इन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की भी पहुंचाया जाता है इनकी संस्कृति अपने आप में बेहद समृद्ध है प्राकृति के अनुसार चलने वाले प्रकृति पूजक प्रकृति को ही सर्वोपरि बताने वाले ।इनकी विवाह पद्धति इन के मरने होने की प्रथाएं इनकी नाते रिश्तेदारों से मिलने जुलने के तरीके इनके और अन्य कई प्रकार की ऐसी विशेष पूजा है जो केवल और केवल आदिवासी समुदाय में ही होती हैं। इनका मूल मंत्र जय सेवा जय बड़ा देव जो इनके इष्टदेव होते हैं वह बड़ादेव  गोडीभाषा में फंडापेन  कहतें हैं  इनका झंडा सतरंगी झंडा धर्म ध्वजा इन के देव, बडादेव, खैरोताई, मुढवाबाबा,गोंडबाबा, मेघनाथ बाबा,रावणबाबा,
कुआरा भीमालपेन, ठाकुर देव और इनके जो भी देव घूमने की प्रक्रिया होती है या देव का परिक्रमा चक्कर लगाने की प्रक्रिया होती है उसमें यह लोग हमेशा (एंटीक्लॉक )घड़ी  विपरीत दिशा में ही घूमते और यही प्रकृति के अनुसार चलते हैं गोंड समुदाय के हर अवसर के अलग-अलग देवी देवता भी होते हैं जिन्हें यह उन्हें अपने स्तर से खुश रखते हैं पूजा पद्धति से।



 भोजन 

गोंड समुदाय के सामान्य लोगों के खान-पान की आदतें कुछ-कुछ एक समान हैं भोजन बनाने के तरीकों में भुजना,उबालना,सेखना आदि शामिल है समुदाय के लोगों का मुख्य भोजन बाजरा और चावल, सभी प्रकार की दालें, मक्का ,ज्वार ,कोदो ,कुटकी ,समा, भी खाते है  वह महुआ के सूखे फलों को भी माँड में मिला लेते हैं समुदाय के लोग महुआ से 18 से ज्यादा प्रकार के व्यंजन तैयार करने की कलाओं में निपुण हैं समुदाय के लोगों के बीच बाजरे और गेहूं की रोटी काफी लोकप्रिय है यह लोग आमतौर पर मांस भी खाते है  जो प्राकृतिक चक्रण  में आवश्यक  हैं । और भी कई प्रकार के प्राकृतिक जड़ी बूटियों प्रकृति से जुड़े बरसात के समय नई नई फसलों जड़ी बूटियों से निर्मित सब्जियां इनको पहचान होती है क्षेत्र के हिसाब से जड़ी बूटियों की भी इनको अच्छी खासी पहचान होती है।
मऊ से निर्मित पेय पदार्थ  बनाना जानते हैं। इनको बांस पोट्टो की सब्जी बरसात के समय मिलने वाले भी पसंद होती हैं

गीत और नृत्य 

गोंड समुदाय के गीतों में उनके जीवन की कहानी होती है अलग-अलग मौसम और अवसरों के लिए अलग-अलग राग होते हैं गीतों में काफी जानकारी होती है और समुदाय में जुड़े मुख्य तौर मैं कर्मा रेला रेला, रेला रेला ,डंडा ,छड़ी, मदारी,हुल्की, की सुवा, आदि शामिल है गीत और नृत्य के साथ साथ समुदाय कई वाद्य यंत्रों,का भी इस्तेमाल करते हैं जैसे किकर, बांसुरी,झाझ ,आदि समुदाय की गीत और नृत्य के जरिए अपनी भावनाओं को बयां करते हैं कई नृत्य की काफी तेज है इससे ये भी काफी स्वस्थ रहते हैं यहां तक कि वह यंत्रों में जो धुन बजती है उसका स्वर भी काफी ऊंचा होता है उनके गीत में बहुत सरल था और दुर्लभ सुंदरता होती है और हजारों वर्षों से परंपरा का हिस्सा रहा है बाहरी परंपराओं से बिल्कुल प्रभावित नहीं है और सदियों से इनका आकर्षक और अनोखा पर बरकरार है

घोटुल 
शिक्षा के केंद्र आदिवासी समुदाय के 

गोंड समुदाय के पारंपरिक  घोटुल  का इस्तेमाल समुदाय के लोगों के बीच अनुशासन  की भावना विकसित करने के लिए किया जाता था मुलाकात का मंच नहीं था। जैसे कि कुछ विद्वानों गोंड समुदाय के  इसके बारे में बताया कि यह ज्ञानार्जन का केंद्र था इसे धार्मिक मान्यताएं भी प्राप्त थी ऐसे दौर में ज्यादातर जगहों पर शिक्षा संस्थान नहीं थे तब यह बहुत प्राचीन गोढुल प्राकृतिक संस्कृति की शिक्षा भी यहीं पर दी जाती थी यह उनका केंद्र था समाज में कैसे जीवन यापन करना है समाज के बुद्धिजीवी लोग यहां पर बताते थे यहां से जुड़ी कई मुहावरे कहावतें पहेलियां हैं और साथ-साथ यहां पर वन और पर्यावरण जड़ी बूटियों शिकार और समस्त प्रकार के सांसारिक जीवन के बारे में भी शिक्षा दी जाती थी खुला मंच होता था विचारों का आदान प्रदान किया जाता था मानसिक और शारीरिक रूप से यहां पर उन को मजबूत करने के उपाय बताए जाते थे यह एक युद्ध कलाओं के लिए भी घोटुल प्रथा जानी जाती थी
खुला मंच गोंडसमुदाय की लड़का लड़कियां युवा साथी वृद्धजन महिला पुरुष सभी यहां पर आ सकते थे और सभी अपने विचार रख सकते थे युवाओं के लिए

हस्तकला
गोंड समुदाय के लोग हस्तकला में माहिर होते हैं यह लोग दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग और फूलों की डिजाइन भी बनाते हैं
समुदाय के लोग अपने घरों की दीवारों पर पेंटिंग बनाते हैं जिसमें जेमिति डिजाइन और पेड़ पौधे एवं जानवरों के चित्र शामिल है समुदाय के लोग सजावट का काम भी काफी अच्छा जानते हैं जाहिर तौर पर गोंड संस्कृति संरक्षण के योग्य है दीवारों और दरवाजों पर ज्यामिति  चित्रों वाली डिजाइन की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है और इनकी जड़ें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में मौजूद हैं

गोंडी भाषा
गोंड समुदाय के लोग रोजमर्रा की जिंदगी में गोल गोडीबोलते हैं काडवेल ,जूले, ब्लाँन्ज,  और ग्रियर्सन ,जैसे भाषा वेदों ,के मुताबिक यह द्रविड़ भाषा ,से भी पहले के दौर की भाषा है उनके मुताबिक द्रविड़ भाषाओं की उत्पत्ति इसी भाषा से हुई है  ।गोंड समुदाय के लोग आपस में अपनी मातृभाषा में ही बात करते हैं हालांकि जब यह बहार लोगों से बात करते हैं तो बोल चाल की मिला जुली हिंदी का इस्तेमाल करते हैं भाषा बोलते है। 

गोंड समुदाय के लोगों ने बेहतर और उच्चस्तरीय सभ्यता विकसित की थी लिहाजा उन्हें जनजातीय समुदाय कहना उचित नहीं होगा गोंड समुदाय मध्य भारत का शासक वर्ग ।।

शासक रहा है  महल तलाब कलाकृतियों के अवशेष अभी मध्य भारत में मौजूद हैं ऐसे में कहा जा सकता है कि मध्य भारत के गोंड समुदाय की संस्कृति विरासत काफी समृद्ध है

आचार्य मोतीराम कंगाली की पुस्तक
योजना जुलाई 2022 की पुस्तक

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