गुरुवार, 11 अगस्त 2022

बहुत बड़ा त्यौहार है। आदिवासियों का विश्व आदिवासी दिवस।

पूरी दुनिया में विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त के दिन मनाया जाता है जो इस वर्ष भी बड़े धूमधाम से मनाया गया हम बात कर रहे हैं। खासकर भारत देश की और विदेशों की भी कुछ तस्वीरें आपको दिखाई जाएंगी वहीं मध्यप्रदेश में विशेष संदर्भ



   विश्व आदिवासी दिवस अपना परम्परा से बनाते हुये 
आदिवासी समुदाय की महिलाये ।


भारत देश में 9 अगस्त के दिन मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस हम आपको बताने विश्व आदिवासी दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1993 में घोषित किया था। इस वर्ष को 9 अगस्त से आदिवासी विश्व आदिवासी संपूर्ण दुनिया में आदिवासी लोग मना रहे हैं।


 गैर आदिवासी समुदाय की परंपरागत प्रकृति से जुड़े लोग भी इस दिवस को मनाते हैं ।


आखिर क्या था जो इनको विश्व आदिवासी दिवस के रूप में घोषणा करनी पड़ी वैसे भी हम जानते हैं। आदिवासी जो प्रकृति से प्रकृति के वाशिंदे हैं प्राकृती पुत्र हैं बहुत सी ऐसी खोजबीन बहुत से ऐसे तक तथ्य सामने है  आदिवासी प्रकृति का बहुत अच्छे से रक्षण कर सकते हैं ऐसी ऐसी  जगह दुनिया में है जहां जीवन संभव नहीं लेकिन कई ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जो वहां पर आज भी जी रहे हैं और उन टापू पर आज के आधुनिक जैसे कि मोबाइल इंटरनेट खान पीन की कई ऐसी चीजें संसाधन यातायात के संसाधन उपलब्ध ना होने के कारण भी यह आदिवासी लोग आज भी अपने परंपरागत वेशभूषा में जंगल में निवास कर रहे हैं और इसी सबको और इन्हीं सब को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कमेटी गठित की 1987 से अपना काम कर रही थी इसके पहले से भी कर रही थी लेकिन 1987 में खास कमेटी बनी जो 5 साल में उसने अपनी रिपोर्ट दी और फिर जाकर 1993   1994 को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई आदिवासियों के प्रकृति के लगाओ और प्रकृति के उनकी सही रखने के तौर तरीके और देश में भारत देश हो या विदेशों और भी दुनिया जगत हो देखते हुए उनके बलिदानों को देखते हुए उनके समर्पण को देखते हुए प्रति उनके लगाव को देखते हुए संसार  में उनके प्रेम को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासी दिवस के रूप में घोषणा की जिसे पूरी दुनिया में विश्व आदिवासी का नाम दिया गया मेरे  हिसाब से दुनिया का एक ऐसा । जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने एकमात्र दिवस है जिसे घोषणा की है आदिवासियों के लिए निश्चित ही बहुत काबिले तारीफ है। 
 दुनिया में करीब 37 करोड़ आदिवासी लोग निवास करते हैं वही भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 10 करोड़ आदिवासी और 705 जनजाति समुदाय निवास करते हैं निश्चित ही यह आंकड़े किसी समुदाय के किसी खास समुदाय के बहुत ज्यादा हैं।
मध्यप्रदेश में विश्व आदिवासी दिवस

 आदिवासियों के विश्व आदिवासी दिवस 

      ये छिन्दवाडा के गोड समुदाय के लोगों द्वारा आदिवासी दिवस 

़ ये सिवनी जिला के गोंड समुदाय के लोग आदिवासी दिवस मनाते हुये 

   आपनी परम्परा के अनुसार वेशभूषा धारण किया युवक आदिवासी
समुदाय छिन्दवाडा 


भील समुदाय  आपनी परम्परागत वेशभूषा में आदिवासी युवक युवती इन्दौर मे टट्या चौहरा पर उत्सवपूर्वक आदिवासियों का पर्व विश्व आदिवासी दिवस ।
 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते छत्तीसगढ़  9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते झाबुआ में 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते इन्दौर भील आदिवासी समुदाय  9 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते इन्दौर मे  गोड समुदाय  की महिलाये  9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते नरसिहपुर में 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते छत्तीसगढ़ में 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते अलीराजपुर  9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते इटासी  9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते शहडोल नागपुर महाराष्ट्र 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते 

 जबलपुर में विश्व आदिवासी दिवस

        सागर मे आदिवासी दिवस मनाते हुये 9अगस्त
    सागर के देवरी तहसील  में  9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस 
      छिन्दवाडा 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते हुये ।                 गोडसमुदाय के प्रदेश अध्यक्ष   विशन सिह परतेती 

पाताल पानी मऊ 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते हुये 
रायसेन म्र.प्र रैली 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाते हुये 

       नृत्य आदिवासियों के नरसिहपुर 
     आदिवासी मुख्य मन्त्री हेमन्त सरेन 
      तेलगंना में आदिवासियों नृत्य
झारखण्ड  के आदिवासी समुदाय में विश्व आदिवासी दिवस मनाते       वही देश दुनिया में भी आदिवासी महिलाओं की उन्नति कावले           तारिफ  है 


हमने आपको बताया है इन तस्वीरों के जरिए की आदिवासी समुदाय ने 9 अगस्त को किस प्रकार से हर्ष उल्लास के साथ मनाया देश-दुनिया में आदिवासी लोग बहुत पुराने समय से रह रहे हैं ऐसा नहीं है कि ने विकास नहीं किया विकास भी किया है लेकिन यह अपनी परंपरागत वेशभूषा परंपरागत रहन-सहन खान-पान को नहीं भूले यानी इन्होंने आज भी अपने पुरखों को आज भी अपने पुरखों जो प्रकृति में चले जाते हैं यानी कि खत्म हो जाते हैं वह इनके साथ हैं पेड़ पौधे नदियां पर्वत बनकर इनके पास है इसलिए यह उनको पूजा करतें हैं और उन्हीं के हिसाब से जैसे वह चले आ रहे थे उन्हीं के साथ से चलते हैं और प्रकृति को बचाने का पुरजोर प्रयास करते हैं कि कहीं हानियां ना हो जाए हमसे कोई ऐसी घटना ना हो जाए जिससे हमारे पुरखे नाराज हो जाएं इसी मान्यता को कुछ लोग रूढ़ीवादी परंपराओं या जादू टोना टोटका कहते हैं लेकिन आदिवासी केवल और केवल अपने पुरखों को पूजा करते  आ रहे हैं प्रकृति के बाशिंदे हैं इस दुनिया में आदिवासी पर बड़े उत्साह के साथ मनाया गया और आगे भी मनाते रहे हमें इनसे सीखना होगा यही भारत में  अनेकता में एकता है भारत में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हिंदू सभी  प्रकार के धर्म है और आदिवासी धर्म ही एक अलग मांग कर रहा है लेकिन आखिर यह आधुनिकता के दौर में इतने  पीछे क्यों हैं सोचना होगा देश में आज देश में वर्तमान स्थिति ऐसी है कि देश का मुखिया प्रथम नागरिक आदिवासी समुदाय से है फिर भी इनके साथ अजीब सी विडंबना है विकास की कई योजनाएं हैं लेकिन विकास नहीं यह समझना होगा क्या कोई रोका है। सब है लेकिन इनका विकास नही जंगलो से  भगाया जा रहा है पता नही क्यों  शायद आप  को पता हो। खैर सवाल है और बहुत कुछ खोलते है  देखना होगा आने वाले समय में आदिवासी के सरकार से अपना विकास करते हैं या फिर आगे सब समझदार है आप सब। 

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

क्यों बनाया जाता हैं विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को ?

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित है

     International Day of the world indigenous peoples
 इस वर्ष की थीम है
 पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी मुलनिवासी आदिवासी  महिलाओं की भूमिका


विश्व आदिवासी दिवस प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है 
अंतर्राष्ट्रीय कार्यदल का गठन 9 अगस्त 1982 में हुआ था पहली बैठक 9 अगस्त को हुई थी यही कारण है कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय कार्यदल का गठन इसलिए हुआ था कि पूरी दुनिया में आदिवासियों द्वारा प्राकृतिक सरक्षंण करने वाले आदिवासियों को उनके रक्षण के लिए दुनिया भर में कोई उपाय नहीं था इसलिए उनको बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व आदिवासी पटल पर उनके संस्था आस्तिव में आई  आदिवासी के रूप में यह दिन निश्चित किया गया 9 अगस्त को पहले कोलम्बस दिवस भी कहते थे क्यों बढे उपनिवेशवाद को खत्म करने के लिए।
विश्व आदिवासी दिवस आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व के आदिवासी लोग का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है यह घटना उन उपलब्धियों और योगदानों को भी स्वीकार करती है जो मूल निवासी लोग पर्यावरण संरक्षण जैसे विश्व के मुद्दे को बेहतर बताने के लिए करते हैं

विश्व में आदिवासी
विश्व में आदिवासी समुदाय की जनसंख्या लगभग 37 करोड है जिसमें लगभग 5000 अलग-अलग आदिवासी समुदाय और इनकी लगभग 7000 भाषाएं आदिवासी समाज के उत्थान और उनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के तौर पर मनाया जाता है भारत समेत विश्व के कई देशों में आदिवासी जाति के लोग रहते हैं उनका रहन-सहन खान-पान और रीति-रिवाज और पहनावा आदि बाकी अन्य लोगों से अलग होता है समाज की मुख्यधारा से कटे होने की वजह से दुनिया भर के आदिवासी लोग आज भी पिछड़े हुए हैं हालांकि समाज की मुख्यधारा में जुड़ने और आगे बढ़ाने के लिए देश दुनिया में तमाम तरह के सरकारी कार्यक्रम और सरकारी कार्य चलाए जा रहे हैं 

भारत में देश की आजादी में भी आदिवासियों का बड़ा महत्व है आजादी  की लड़ाई के समय बिरसा मुंडा झारखंड छोटानागपुर क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई थी मध्यप्रदेश में भी आदिवासियों ने विशेष भूमिका निभाई थी रघुनाथ शाह शंकर शाह तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया गया था हर क्षेत्र में आदिवासियों ने अपना अंग्रेजों के  प्राणों की आहुति दी हैं। नागपुर का विद्रोह छोटा संथाल विद्रोह गारो खासी की लड़ाई भील प्रदेश का आंदोलन आंध्र प्रदेश के गोंड झारखंड के आदिवासी समुदाय संथाल समूह का विद्रोह तमाम प्रकार की लड़ाइयां लड़ी है देश की आजादी में आदिवासी समुदाय ने 1603 से स्वतन्त्र तक 

मई 1995 - 2004 को पहला अंतरराष्ट्रीय दर्शको घोषित गया था यूएनओ ने वर्ष 2004 में 2015 को दूसरे अंतरराष्ट्रीय दर्शक की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 दिसंबर 1994 को संकल्पित 49/ 214 द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगाज़्यादा जानकारी को पढों

बुधवार, 3 अगस्त 2022

गोंड समुदाय की समृद्ध विरासत



गोंड समुदाय में कई  उप जनजातियां हैं।  हालांकि सांस्कृतिक और नस्लीय तौर पर यह सभी एक जैसी हैं।
नस्ल के तौर पर गोंड समुदाय की उत्पत्ति को लेकर कई तरह के सिद्धांत पेश किए गए हैं हालांकि जाने-माने मानव विज्ञानी  हीमेनडोफ्र   की राय है कि हिंदू और अन्य समुदाय के लोगों ने इस जनजाति  आदिवासी समुदाय का नाम "गोंड,  रखा आमतौर पर यह लोग अपने लिए इस शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं मतलब इनके बीच  यह हमेशा अपने आपको कोईतुर या कोंयावासी कहते हैं। 
गोंड समुदाय की सामाजिक संरचना काफी पुरानी और अनूठी है । यह व्यवस्था इनके के गुरू पुवर्ज पहाँदी  कुपार लिगो  द्वारा स्थापित की गई थी   
     गोंडसमुदाय के आदिगुरु  तिरुपारीपहाँदी कुपार लिगो  
 गोंडसमुदायके आदिगुरु तिरु पारी पहाँदी कुपार लिगों का चित्र

यह व्यवस्था अपने अनोखे पन के साथ अभी तक चली आ रही है। समय-समय पर दूसरे समुदायों द्वारा कई तरह के यह हस्तक्षेप सामना करने के बावजूद गोंड समुदाय अपनी परंपराओं के साथ जीवन यापन कर रहा है। और गोंड समुदाय से जुड़ी सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन से पता चलता है कि यह समुदाय अब अपने सामाजिक विकास के शुरुआती चरण से काफी आगे बढ़ चुका है जबकि इससे जुड़े कुछ तबके सभ्यता के अपेक्षाकृत आधुनिक चरणों से भी जुड़े चुके हैं इस समुदाय में 750 गोत्र हैं 2250 कुल देवी देवता हैं और इन 750 गोत्रों को  सभी गोत्रों को अलग-अलग वृक्ष की रक्षा के लिए  उत्तरदायित्व किया गया है अर्थात इनके गुरु पहाँदी कुपार  लिंगो द्वारा यह व्यवस्था इनको दी गई है।
परिवार
गोंड समुदाय की सबसे छोटी इकाई परिवार है। एक समान देव पूजने वाले या कुटुम परिवार बढ़ जाने के बाद कई परिवार एक के समूह को  गोत्र कहा जाता है, गोत्र या कुल में कई परिवारों का समूह होता है जिसे यह इन्हें टोटम कहा जाता है मुख्य रूप से गोत्र पर निर्भर होते हैं जैसे किसी  गोत्र अडीयाम  आर्मो अहोम,ओयमा,ओलाडी,उडाम एलाम, तिडगाम,मरकाम, इन गोत्रों के जो भी सगाजन होंगे जिनकों  संगापाढी, भी  कहा जाता है गोंड भाषा में इन गोत्र धारियों की पहचान के लिए इनका एक झंडा होगा इनकी पहचान के लिए इनका एक गढ़ होगा देव संख्या 6 मानी  गई है।
यदि 6 देवधारी लोग शादी के लिए संबंध बनाएंगे तो केवल और विषम संख्या के पास केवल 3,5,7 देव के पास आपनी शादी करेगें 
इसी प्रकार से इनको इनके जो 750 गोत्र मिले हैं उन्हीं में इनका आपस में विवाह होता रहता है इसलिए यह जो इनकी परंपरा है यह इनकी सामुदायिक परंपरा है जानिए खुद में इतने समृद्ध हैं कि इन्हें किसी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि विवाद सम्बन्ध  से परिवार की उत्पत्ति होती है और यही यह बात सिद्ध कर देती है कि गोंड समुदाय खुद में एक बेहद समृद्ध  समुदाय है 
प्रत्येक गोत्र प्रकृति में किसी ना किसी पेड़ की रक्षा करता है इस प्रकार से भी इनको प्रकृति का रक्षक माना गया है इस प्रकार से इस समुदाय में कभी भी दहेज की प्रथा नहीं रही उल्टा वर पक्ष के लोग लड़की पक्ष का मूल्य देते हैं। हालांकि आज समय के अनुसार और दूसरे लोगों को देख  कर कही कही थोडी बहुत प्रथाओं में परिवर्तन हुआ है  लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आज भी इसी प्रकार की प्रथा है परंपरागत रूप से दहेज बिल्कुल भी ना लिया जाता है ना दिया जाता है।

महिलाओं की स्थिति

गोंड समुदाय में महिलाओं की स्थिति हमेशा सम्मानीय रही है उदाहरण, के रूप रानी दुर्गावती गोंड साम्राज्य की सबसे प्रतापी सम्राक्षी  जबलपुर गढ़ मंडला की सम्राक्षी ,भोपाल की रानी कमलापति रानी गोंडवश राजघराना वंश की थी 
मोटे तौर पर महिलाओं की हैसियत पुरुषों के बराबर ही है वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं हर काम में हाथ बढाती हैं जीविकोपार्जन में भी महिलाओं की अहम भूमिका होती है ज्यादातर घरेलू काम महिलाएं करती हैं वे बच्चों एवं और पशुओं को देखभाल करती हैं साथ ही परिवार के लिए खाना भी बनाती हैं परिवार के सभी अहम फैसलों और विवादों में पुरुष अपनी पत्नी से सलाह  लेते हैं इनकी राय का भी सम्मान करते हैं महिलाओं को कुछ रीति-रिवाजों से दूर रखा जाता है कुल मिलाकर गोंड महिलाओं में अपने समाज में हैसियत सम्मानजनक होती है। इनमें पर्दा प्रथा नहीं है

विवाह
पारंपारिक और समुदाय में कई तरह के विवाह प्रचलन में गोंड समुदाय में खून के रिश्तेदारों के बीच शादी का  प्रचलन नहीं है अर्थात एक गोत्र में शादी नहीं करते हैं यह इनका टोटम होता है टोटम एक दूसरे में शादी नहीं करेंगे चाहे कुछ भी हो जाए  भाई बहन ही कहलाएंगे।   मामा और बुआ के बच्चों के बीच शादी की परंपरा है लड़का लड़की की मर्जी के अलावा माता-पिता की सहमति भी बहुत जरूरी होती है। गोंडजनों में इनकी जो शादी कराने वाला मुठबा या भुमका जिसे ये बैंगा कहते है विवाह करवाता है इनकी परंपराओं के अनुसार इनकी शादी अधिकतर दिन में ही होती है गोंडसमुदाय में विधवा विवाह की भी अनुमति है ऐसी कई परंपराएं जो गोंडसमुदाय  को इनके अलग होने के कई प्रमाण देती है जैसे 
दूध लौटावा प्रथा ,जमाई विवाह, गोल गधेड़ो विवाह, और भी अन्य परंपराएं हैं


त्योहार

गोंड समुदाय के धार्मिक त्योहारों में अखाडी,पोला, जिवाती,  दिवाली, नवोतिन्दाना दशहरा और फाग आदि शामिल हैं इनमें से कई त्योहारों का संबंध खेती के मौसम से है समुदाय से जुड़े त्यौहार सामूहिक रीति-रिवाजों पर आधारित होते हैं इन त्यौहारों को काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है इनके त्यौहार बुनियादी रूप से बिल्कुल हट के इनकी  परंपराओं के हिसाब से ही होते हैं।


बलि
और समुदाय में अपने देवी-देवताओं को बलि भी चलाते हैं समुदाय के लोग देवी-देवताओं खुश करने के लिए बकरा और मुर्गे की बलि भी देते हैं बीमारी से मुक्ति के लिए बलि देने का प्रचलन भी है माना जाता है कि बलि के जरिए इन शैतानी तत्वों को खात्मा मुमकिन होगा जो गांव के लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं

मृत्यु

मृत्यु को लेकर गोंड समाज और समुदाय की अलग अवधारणा है समुदाय का मानना है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसका संबंध देवी शक्तियों से है  समु़दाय बीमारी और मौत दोनों को देव शक्तियों का प्रभाव बताता है शुरुआती में इस समुदाय के शव को दफनाने की परंपरा थी हालांकि गोंड समुदाय द्वारा शव को जलाने की परंपरा शुरू करने के बाद से दोनों परंपराएं प्रचलन में है मगर अधिकतर बाहुल्य क्षेत्रों में जहां गोंड समुदाय आदिवासी लोग निवास करते हैं वहां पर दफनाने की ही प्रथा आज भी  है आज भी चलन में है।


सांस्कृतिक पहलू व देव पुजा सेवा अर्जी गोगो

गोंडसमुदाय ने अपनी सामाजिक संरचना में खुद की संस्कृति परंपरा विकसित की है इसमें अन्य संस्कृतियों को ज्यादा महत्व नहीं है इनकी संस्कृति परंपरा है सरल और वाचिक  परंपराओं के जरिए इन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की भी पहुंचाया जाता है इनकी संस्कृति अपने आप में बेहद समृद्ध है प्राकृति के अनुसार चलने वाले प्रकृति पूजक प्रकृति को ही सर्वोपरि बताने वाले ।इनकी विवाह पद्धति इन के मरने होने की प्रथाएं इनकी नाते रिश्तेदारों से मिलने जुलने के तरीके इनके और अन्य कई प्रकार की ऐसी विशेष पूजा है जो केवल और केवल आदिवासी समुदाय में ही होती हैं। इनका मूल मंत्र जय सेवा जय बड़ा देव जो इनके इष्टदेव होते हैं वह बड़ादेव  गोडीभाषा में फंडापेन  कहतें हैं  इनका झंडा सतरंगी झंडा धर्म ध्वजा इन के देव, बडादेव, खैरोताई, मुढवाबाबा,गोंडबाबा, मेघनाथ बाबा,रावणबाबा,
कुआरा भीमालपेन, ठाकुर देव और इनके जो भी देव घूमने की प्रक्रिया होती है या देव का परिक्रमा चक्कर लगाने की प्रक्रिया होती है उसमें यह लोग हमेशा (एंटीक्लॉक )घड़ी  विपरीत दिशा में ही घूमते और यही प्रकृति के अनुसार चलते हैं गोंड समुदाय के हर अवसर के अलग-अलग देवी देवता भी होते हैं जिन्हें यह उन्हें अपने स्तर से खुश रखते हैं पूजा पद्धति से।



 भोजन 

गोंड समुदाय के सामान्य लोगों के खान-पान की आदतें कुछ-कुछ एक समान हैं भोजन बनाने के तरीकों में भुजना,उबालना,सेखना आदि शामिल है समुदाय के लोगों का मुख्य भोजन बाजरा और चावल, सभी प्रकार की दालें, मक्का ,ज्वार ,कोदो ,कुटकी ,समा, भी खाते है  वह महुआ के सूखे फलों को भी माँड में मिला लेते हैं समुदाय के लोग महुआ से 18 से ज्यादा प्रकार के व्यंजन तैयार करने की कलाओं में निपुण हैं समुदाय के लोगों के बीच बाजरे और गेहूं की रोटी काफी लोकप्रिय है यह लोग आमतौर पर मांस भी खाते है  जो प्राकृतिक चक्रण  में आवश्यक  हैं । और भी कई प्रकार के प्राकृतिक जड़ी बूटियों प्रकृति से जुड़े बरसात के समय नई नई फसलों जड़ी बूटियों से निर्मित सब्जियां इनको पहचान होती है क्षेत्र के हिसाब से जड़ी बूटियों की भी इनको अच्छी खासी पहचान होती है।
मऊ से निर्मित पेय पदार्थ  बनाना जानते हैं। इनको बांस पोट्टो की सब्जी बरसात के समय मिलने वाले भी पसंद होती हैं

गीत और नृत्य 

गोंड समुदाय के गीतों में उनके जीवन की कहानी होती है अलग-अलग मौसम और अवसरों के लिए अलग-अलग राग होते हैं गीतों में काफी जानकारी होती है और समुदाय में जुड़े मुख्य तौर मैं कर्मा रेला रेला, रेला रेला ,डंडा ,छड़ी, मदारी,हुल्की, की सुवा, आदि शामिल है गीत और नृत्य के साथ साथ समुदाय कई वाद्य यंत्रों,का भी इस्तेमाल करते हैं जैसे किकर, बांसुरी,झाझ ,आदि समुदाय की गीत और नृत्य के जरिए अपनी भावनाओं को बयां करते हैं कई नृत्य की काफी तेज है इससे ये भी काफी स्वस्थ रहते हैं यहां तक कि वह यंत्रों में जो धुन बजती है उसका स्वर भी काफी ऊंचा होता है उनके गीत में बहुत सरल था और दुर्लभ सुंदरता होती है और हजारों वर्षों से परंपरा का हिस्सा रहा है बाहरी परंपराओं से बिल्कुल प्रभावित नहीं है और सदियों से इनका आकर्षक और अनोखा पर बरकरार है

घोटुल 
शिक्षा के केंद्र आदिवासी समुदाय के 

गोंड समुदाय के पारंपरिक  घोटुल  का इस्तेमाल समुदाय के लोगों के बीच अनुशासन  की भावना विकसित करने के लिए किया जाता था मुलाकात का मंच नहीं था। जैसे कि कुछ विद्वानों गोंड समुदाय के  इसके बारे में बताया कि यह ज्ञानार्जन का केंद्र था इसे धार्मिक मान्यताएं भी प्राप्त थी ऐसे दौर में ज्यादातर जगहों पर शिक्षा संस्थान नहीं थे तब यह बहुत प्राचीन गोढुल प्राकृतिक संस्कृति की शिक्षा भी यहीं पर दी जाती थी यह उनका केंद्र था समाज में कैसे जीवन यापन करना है समाज के बुद्धिजीवी लोग यहां पर बताते थे यहां से जुड़ी कई मुहावरे कहावतें पहेलियां हैं और साथ-साथ यहां पर वन और पर्यावरण जड़ी बूटियों शिकार और समस्त प्रकार के सांसारिक जीवन के बारे में भी शिक्षा दी जाती थी खुला मंच होता था विचारों का आदान प्रदान किया जाता था मानसिक और शारीरिक रूप से यहां पर उन को मजबूत करने के उपाय बताए जाते थे यह एक युद्ध कलाओं के लिए भी घोटुल प्रथा जानी जाती थी
खुला मंच गोंडसमुदाय की लड़का लड़कियां युवा साथी वृद्धजन महिला पुरुष सभी यहां पर आ सकते थे और सभी अपने विचार रख सकते थे युवाओं के लिए

हस्तकला
गोंड समुदाय के लोग हस्तकला में माहिर होते हैं यह लोग दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग और फूलों की डिजाइन भी बनाते हैं
समुदाय के लोग अपने घरों की दीवारों पर पेंटिंग बनाते हैं जिसमें जेमिति डिजाइन और पेड़ पौधे एवं जानवरों के चित्र शामिल है समुदाय के लोग सजावट का काम भी काफी अच्छा जानते हैं जाहिर तौर पर गोंड संस्कृति संरक्षण के योग्य है दीवारों और दरवाजों पर ज्यामिति  चित्रों वाली डिजाइन की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है और इनकी जड़ें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में मौजूद हैं

गोंडी भाषा
गोंड समुदाय के लोग रोजमर्रा की जिंदगी में गोल गोडीबोलते हैं काडवेल ,जूले, ब्लाँन्ज,  और ग्रियर्सन ,जैसे भाषा वेदों ,के मुताबिक यह द्रविड़ भाषा ,से भी पहले के दौर की भाषा है उनके मुताबिक द्रविड़ भाषाओं की उत्पत्ति इसी भाषा से हुई है  ।गोंड समुदाय के लोग आपस में अपनी मातृभाषा में ही बात करते हैं हालांकि जब यह बहार लोगों से बात करते हैं तो बोल चाल की मिला जुली हिंदी का इस्तेमाल करते हैं भाषा बोलते है। 

गोंड समुदाय के लोगों ने बेहतर और उच्चस्तरीय सभ्यता विकसित की थी लिहाजा उन्हें जनजातीय समुदाय कहना उचित नहीं होगा गोंड समुदाय मध्य भारत का शासक वर्ग ।।

शासक रहा है  महल तलाब कलाकृतियों के अवशेष अभी मध्य भारत में मौजूद हैं ऐसे में कहा जा सकता है कि मध्य भारत के गोंड समुदाय की संस्कृति विरासत काफी समृद्ध है

आचार्य मोतीराम कंगाली की पुस्तक
योजना जुलाई 2022 की पुस्तक

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

गोंड समुदाय में विवाह

अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को बनाकर रखा वह प्रकृति से जुड़ा प्राप्ति के परिपूर्ण भारत में आदिवासियों विवाह कैसे होते हैं

हम बात कर रहे हैं  गोंड समुदाय की
 गोंड समुदाय  जनजाति या गोंड आदिवासी लोग भारतीय राज्यों मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा में फैले हुए हैं। वे द्रविड़ियन बोलते हैं और उन्हें अनुसूचित जनजाति श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। गोंड शब्द को तेन्दु शब्द कोंडा से लिया गया है, जिसका अर्थ है पहाड़ी। पहाड़ के समान  मजबूत  रहने वाले


विवाह क्या होता है
विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है

मध्य भारत के आदिवासी समुदाय में विवाह गोंड समुदाय 
यह  मध्य प्रदेश के सभी जिलों में फैली हुई है लेकिन नर्मदा के दोनों और विंध्य और सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इसका अधिक घनत्व है राज्य के बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद बालाघाट, मंडला,शहडोल जिलों में गोंड समुदाय  है

निवास स्थान लगभग मध्य प्रदेश के संपूर्ण जिलों में मध्य प्रदेश की चर्चा में
जनसंख्या के हिसाब से मध्य प्रदेश में 21% हिस्सेदारी रखते हैं
आमतौर जिनका मध्यपदेश के क्षेत्र में सम्पूर्ण मध्यप्रदेश कहीं ना कहीं राज हुआ करता था   राजगोंड  कहा जाता है
और इन्हीं के क्षेत्र में इन्हीं के लोग जो प्रजा के रूप में निवास करते थे खेतीबाड़ी करते थे उन्हें धुरगोंड कहा जाता है
समानता अब दोनों में शादी विभाग के संबंध होने लगे हैं

 मध्यप्रदेश के जिलों में गोंड समुदाय के विवाह कई प्रकार पद्धति या रस्मो से होते हैं

कई प्रकार के विवाह प्रचलित थे प्राचीन समय में  समुदाय में जो आज भी कहीं कहीं इन्हीं पद्धतियां  से विवाह संपन्न होते हैं
जैसे  1 चढ विवाह
     2 दूध लौटावा विवाह
     3पठौनी विवाह
     4भगोली विवाह 
     5लमसेना विवाह
     6पलायन विवाह 
     7हल्दी विवाह 
     8गुरावट विवाह 
     9सेवा विवाह
     10अपहरण विवाह 
      11 गार्धव विवाह
      12हठ विवाह
       
  चढ विवाह 
        दुल्हा दुल्हन छायाचित्र
गोंड समुदाय  भारत की बड़ी जनजाति आदिवासी समुदाय  मजबूत गोत्र व्यवस्था सम और विषम गोत्र में बंधी होती है दो भाग में दो परिवारों के बीच शादी होती है रस्मों और गीतों की व्यवस्था इस शादी में आदमी यहां पर खजूर के पेड़ की डाली और खजूर के फल टागें हुआ कमर में घूमता है यह दोनों परिवार के संपर्क में होता है मलेहा कहा जाता है यह बरात आने के 2 से 3 दिन पहले लड़का वालों के यहां से आ जाता है लड़की के घर 
गोंड आदिवासी समुदाय व्यवस्था में सहयोग और लोकतांत्रिक मूल्य बहुत गहरे हैं मसलन जिसके घर शादी होती है उससे कहीं ज्यादा समाज की जिम्मेदारी गांव के लोगों के बीच काम का बंटवारा हो जाता है लोग अपना अपना काम जिम्मेदारी से करते हैं जैसे कुछ लोगों का काम पानी लाना होता है और कुछ लोगों का काम खाना बनाना होता है शादी में सीधे शादी तरीके से होती है शादी के दिन कुछ खास हो ऐसा जरूरी नहीं है खाने में दाल चावल रांगी बनाए जाते हैं रोजमर्रा के कपड़े में ही अधिकतर लोग नजर आते हैं दिखावा और आडंबर कुछ भी नहीं है इसके बाद भी यह अपनी शादी में बहुत मौज मस्ती करते हैं
गोंड आदिवासी समुदाय में ना तो ज्यादा दिखावा और ना ही फिजूल खर्चा होता है आपसी सहयोग और भाईचारे से ही शादी विवाह संपन्न किए जाते हैं।
पर्यावरण को एक नए पैसे का नुकसान नहीं और आदिवासियों की सामाजिक और धार्मिक अवधारणा है प्रकृति के साथ मजबूती से जुड़ी होती है 
अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग पूजा होती हैं मसलन जैसे जंगल देव गांव का देव पहाड़ देव और दूल्हा देव किस धार्मिक जिम्मेदारी संभालने वाले व्यक्ति को गामता कहां जाता है यही  मंडप तैयार करता है
सरसा छुलाई की रस्म होती है करसाना हिलाना महिला एवं पुरुष करते हैं इसमें एक मटके के घड़े में धान भरी जाती है और एक मटकी की घड़ी में खलाते हुए पूर्वजों के यहां से जहां पर इनका देव बैठा होता है वहां से लाते हैं दूल्हा और दुल्हन दोनों इसमें दान देते हैं और जो दुल्हन या दूल्हे की बहन होती है से पूछती है कि हम को क्या दोगे गीतक रूप में के रूप में सभी गांव वालों को लड़का लड़की के परिवार वालों को खाना कराया जाता है और दूसरे दिन लड़का लड़की मंडप में हरे मंडप में गामता   इनकी शादी पड़ता है और उसके बाद शादी और विदाई फिर लडके के यहां चकलामाझी और वह अपने गांव को यानी भोजन करवाता है।
कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली
शादी -मठामिग
दूल्हा -नवडा
दुल्हन -नवडी
चकलामाजी -लड़के के घर पर होता है एक प्रकार की रस्म
विदाई -सार नियारा हतो ना
 
     विवाह के बाद दुल्हा दुल्हन नाचते हुये छायाचित्र 
2 दूध लौटावा  विवाह
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं गोंड समुदाय में गोत्रावली बहुत मजबूत होती है मामा और बुआ के बच्चों के बीच शादी संबंध हो ना उसी का एक परिणाम है और इसी प्रकार से इस शादी विवाह जो कि दोनों परिवार की रजामंदी से होता है इसे दूध लौटा विवाह कहते हैं

3 सेवा विवाह 
लड़की के घर पर रहकर लड़की के परिवार वालों को खुश करता है उनके यहां काम काज हर काम में काम बटाता है। तब जाकर वह कहीं खुश होकर अपनी लड़की लड़का विवाह कर दे देते है 

4 लमसना विवाह
लड़की के यहां रहने लगता है शादी के बाद लड़का।  खेती-बाड़ी करने लगता है वहीं पर रह कर अपना जीवन यापन करता है शादी करने के बाद  ससुराल में 

5पलायन या भगोली विवाह 
लड़का लड़की भाग कर शादी कर लेते हैं फिर लड़के  के परिवार को लड़की के परिवार को दंड स्वरूप कुछ ना कुछ देना होता है इस जरुरी नही कोई कीमती चीज ही हो। शर्त अनुसार या इनकी पचायंत के अनुसार जब मान कर दोनों परिवार में शादी होती है  इस विवाह को भगोली विवाह भी कहते है 

 5पठौनी विवाह
इसमें लड़की बरात लेकर लड़के के यहां जाती है।

इसी प्रकार से सभी,विवाह पद्धतियों की अलग-अलग मान्यता है और खासकर अब इन आधुनिकता के दौर में कुछ ही पद्धतियां सीमित रह गई हैं। हालांकि जैसे-जैसे शिक्षित होते जा रहे हैं या अपनी विवाह के मूलभूत सांचा तो सजायें हुये मगर इनके विवाह ने आधुनिकता ने भी प्रवेश किया है खान पान और अन्य स्थानों 
हालांकि अपने अस्तित्व में बना हुआ है आदिवासी समाज
विवाह पद्धति आदिवासी समुदाय में। हल्दी चावल का बड़ा महत्व होता है।

मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय के लोगों से 
 पुस्तक   कोया पुनेम गोंडियन गाथा